देवनागरी में लिखें

                                                                                             देवनागरी में लिखें

Sunday 27 November 2011

आप सही लिखी थी , कि तुड़ी-मुड़ी मनोस्थिति से बातें निकलती हैं... बात बहुत छोटी सी थी , लेकिन इतनी बड़ी बना दी गई , कि मन व्यथित हो गया ,और वर्षों से दबी बातें जो घर के अन्दर थी , आज सार्वजनिक हो गई.... शायद , "औरत"  हर रूप में सब सह जाये , लेकिन औरत माँ के रूप में अपने गुस्सा को दबा नहीं पाये... ! सच ही किसी ने कहा है :---" दुःख" बांटने से आधा और "सुख" बांटने से दोगुना  हो जाता है.... ! ब्लॉग पर अभिव्यक्ति के बाद मन की व्यथा कुछ तो कम जरुर हो गई.... ! इनका कहना है , कि ये सब मेरे कुंठित मन की अभिव्यक्ति है.... क्या आपलोगों को भी ऐसा लगता है..... ??
                            इतना भी इंतज़ार नहीं हो सका , कि जब घर में लैपटॉप-इनटरनेट आ जाये तो मैं अभिव्यक्ति को पोस्ट करूँ मेरेगुस्सा   में इतनी बैचेनीथी ,किमुझे"साइबरकैफे"तक ले गई....  "साइबरकैफे"में"गेम" जो बच्चों का मनोरन्जन करे , नवयुवकों के लिए "इंटरनेट" , जो उनके ज्ञान में वृद्धि करे , "ब्लॉग" , जो अपने मन की अभिव्यक्ति के लिए आकाश दे.... !
                             पटना में साइबर-कैफे एक चर्चित विषय बन कर रह गया है.... ! समाज के लिए अति उपयोगी ( क्योंकि सभी के लिए कंप्यूटर या लैपटॉप और इंटरनेटकी व्यवस्था करना आसान तोनहीं... ) बनानेके स्थान पर समाजको पतन के राह में डालने का काम क्यों होता होगा.... ?  साइबर-कैफे में शराब की व्यवस्था , बच्चों के प्रेम-स्थल(रगं-रेलियाँ) बनाने की जरुरत तो "पैसे"  की भूख ही कारण होता होगा.... ?   साइबर-कैफे न होकर चकला घर हो.... :(  गलती करते समय , गलती करने वालों की निगाह अपने परिणाम पर कहाँ होता.... !!




Wednesday 23 November 2011

सास को परिभाषित..... !!

Infer             :---   अनुमान करना ,उनकी सारी ,
Inferible    :---           अनुमानिक ,बाते ही सही ,
Inference    :---     अनुमान करना ,दूसरा ,
Inferior  :---              निकृष्ट ही होगा (low in merit or value) ,
Inferaty:---               निकृष्टता के साथ-साथ ,
Infernality:---        पैशाचिकता बढ़ जाये उनका ,
Infernal:---          नारकीय बना और
Infernaly:---         नारकियता से परिपूर्ण कर दे
Inferiorly:---       हीनता से भर जाये (बहु)
Infest:---   बाधा डाल , और ,
Infestation:---कष्ट ज्यादा दें ,
Infertile:---बंजर कर दें बहु का मन ,
Infertility:---उसरपन से भर दें बहु की जिन्दगी.... !
तभी तो होगी " सास " हिटलर को मात देने वाली.... !!
                                
                                                             या नहीं तो....
 रिश्ते होगीं :---
जैसे :---

कड़ाके की ठंढ में ----
खिली-खिली धुप ----
                                                  
                                               " आन्नदमय "
रिश्ते होगीं :---
जैसे :---

बैचैनी वाली गर्मी में ---
आषाढ़ की पहली बारिश ---
                                                    
                                                     " मधुर "
रिश्ते होगीं :---
जैसे :---

माँ की गोद में ---
नवजात शिशु ----
                                
                                                 " सुरक्षित "

Tuesday 22 November 2011

शुक्रिया.... ! बहुत -बहुत शुक्रिया.... !!

                                                            शुक्रिया.... ! बहुत -बहुत शुक्रिया.... !!

हम नाम नहीं हम ,
   " किरण " अर्थ है हमारे नाम का.... !
शायद इसीसे एक से शौक हमारे ,
    लिखना अपनी - अपनी पसंद ,
पसंद अपनी लेख्य - लेखनी शायद.... !!

ऊँगली लिखे कुछ शब्द ,
   जब भी Facebook पर ,
आपका भी कुछ लिखना ,
    तभी Facebook पर ,
लगे , आपने थामा , मेरी ऊँगली.... !!        

आपके पास अनुभव है ,वर्षौ का ,
     वर्षों से , लिखतीं आ रहीं हैं आप .... !
आप हैं मेरी मार्ग दर्शिका ,
     मार्गदर्शन करती रहेगीं , हमेशा .... !!

कुछ ,कुछ भी गलत लगे ,
   लगे हाथ सुधार देगीं ,सबकुछ .... !
शुक्रिया कहना है औपचारिकता ,
   औपचारिकता , हमेशा होता जरुरी.... !!
                                                
                                                   शुक्रिया.... ! बहुत -बहुत शुक्रिया.... !!





Monday 21 November 2011

ऐसा क्यों होता ---- !!

D.G.M. Of PESU S.E. Bihar State Electricity Bord , Senate Member Of Bihar University , Council Member Of IEI From Bihar , Chairman Of Mechanical Engineering Division Board Of IEI , Director Of  Design & Research Of IEI at Bangalore ,
                                               " उपर्युक्त सभी पद एक ही अधीन है... !! "  

उंच्च पद पर आसीन ---
  समाज में प्रतिष्ठित इन्सान ---
प्यार करे या न करे ---
  परवाह बहुत करते ---- !

महंगी साड़ी दिलवानी हो (अपनी मर्जी से) ---
  बाहर घुमाने ले जाना हो (हवाई जहाज से) ---
घर खर्च के लिए देना हो  पैसा  ---
  कंजूसी नहीं दिखलाते ---- !!

बाड़ी - गाड़ी (सोना जरूरी नहीं) ---
     थाली में परोस के देते ---
दुसरे के गलतियों पर ---
  पत्नियों को कसूरवार ठहराते ---- !

होने पर बीमार डॉ.को दिखलाना ---
   जिम्मेदारी समझते(गृह - कार्य नहीं) ---
झगड़े का आधार बात - चीत होता ---
   दुसरे की राय सही नहीं समझते ---- !!

सुख या दुःख एक दुसरे का ही---
     बेनकाब चेहरा होता ---
 थोड़ी देर रुक कर कुछ सोचें ---
   इतनी फुरसत में कहाँ होते ---- !!

                                                        ऐसा क्यों होता ---- !!
तारीफ उनकी , उपर्युक्त बाते ---
लगती उन्हें , कुंठित मन की अभिव्यक्ति ---
जरुरी तो नहीं , कि अकेला होना ही ---
अकेलेपन का एहसास हो --- !
                                            कभी - कभी रिश्तों के साथ लम्बा समय गुजारते हुए भी इन्सान अकेलापन महसूस कर सकता है ---- !! उसके लिए रिश्ते एक समझौता बन जाते हैं --- ! काश .... रिश्ते में समझौता न होकर सामंजस्य होता ---- ???

Sunday 20 November 2011

एक सवाल....? गलती कितनी बड़ी..... ??


आज मैं और मेरे पति मुजफ्फरपुर आये जहाँ मेरे सास, ससुर, देवर, देवरानी और उनका बेटा रहते हैं..
शाम में मैं और मेरी देवरानी साइबर कैफे गए क्योंकि कई दिनों से मैं कुछ देख-पढ़-लिख नहीं पाई थी....
मैसूर में बहुत समय मिलता था जिसके वजह से एक नशा जैसा हो गया है...
देवरानी को दशहरा-दिवाली के फोटो भी दिखलाना था...करीब एक - डेढ़ घंटे समय बिताने से अच्छा लग रहा था..घर आने पर एक नौकर, जिसे मेरे पति ने २-३ महीने पहले सास के आराम के लिए रखा है, (उसे मेरे आराम के लिए पटना भी रखा जा सकता था,हमें लगा की बंधन हो जायेगा,हमलोग हमेशा बाहर घुमने जाते रहते हैं) बोला:-घडी देखिये,घडी देखिये, घडी देखिय,घडी में समय क्या हो रहा ?ये समय आपलोगों का घुमने का है या चाय नाश्ता का बनाने का ?
नौकर मुंहफट हैं मुझे पता था लेकिन मेरे सामने बोलेगा इसके लिए मैं तैयार नहीं थी, मुझे गुस्सा तो बहुत आया, दूसरा कोई उसे डाटेंगा इसकी भी उम्मीद नही थी (क्योंकि बरसों पहले (८२ से ८८)जब मैं संयुक्त परिवार में अकेली रहती थी (रक्सौल) मेरे पति मुजफ्फरपुर में कार्य करते थे, इतना बड़ा ही नौकर था जो काफी मुंहफट था.. जबाब लगाने के साथ ,जो कार्य मैं करने के लिए कहती वो कार्य नहीं ही करता..
एक दिन घर में कोई नहीं था, बाहर से भिखारिन स्त्री की आवाज आई, नौकर बाहर से आ रहा था,उससे पूछा , बाहर कौन है..? (मुझे बाहर जाने  का अनुमति नहीं थी)वो बोला :-आपकी माँ...!
उस दिन मेरी बर्दाश्त करने की सीमा समाप्त हो गई (शायद इसलिए क्योंकि मेरी माँ नहीं थी, अगर होती तो कम बुरा लगता), मैं उसे डांट नहीं सकती थी.. मेरा मौन विद्रोह शुरू हुआ,उससे कोई कार्य करने के लिए नहीं करती, अपना खाया बर्तन भी धो लेती... ! मेरा विद्रोह किसी से बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था.., लेकिन किसी ने नौकर को डाटना जरुरी नहीं समझा, उलटे मेरे पापा - भैया को बुला कर आदेश हुआ मुझे वापस ले जाएँ,  जैसे मैं बाजार से खरीदी कोई चीज हूँ..!!)
 १३-११-२०११
मेरे बेटे को जब मालूम हुआ तो अपने चचेरे बड़े भाई को फोन पर बोला :- नौकर को तुम भी कुछ नहीं बोले, खड़े तमाशा देखते रहे, शांत कैसे रहे..? भाई :-मेरे कुछ बोलने डांटने पर दादी नाराज हो जायेगीं, राहुल :- फोन दादी को दो ,दादी को फोन मिला राहुल :-आप घर की गार्जियन है नौकर को समझाइए वो किसी को जबाब नहीं नहीं दे दादी :-तुम मुझे क्यों बोल रहे हो , मुझे गार्जियन कोई नहीं मानता है जब तुम्हारे पापा थे उन्हें डाटना चाहिए राहुल :-मेरी माँ को कोई कुछ कहता पापा को बुरा कहाँ लगता है..?दादी :-तुम बाहर रहते हो कुछ नहीं जानते हो यहाँ के राजनीती में मत पड़ो..वार्तालाप समाप्त हो गई...थोड़ी देर के बाद दादी फिर फोन कीं :-तुम्हारी औकात की तुम मुझे समझाओ..इस तरह से बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई..जब वे बहुत डांटने और चिल्लाने लगी तो राहुल :-दादी आप इतना गुस्सा मत होइए, कुछ गलत तो बोला नहीं हूँ आप दादा पापा या चाचा ,माँ को कुछ बोलते हैं तो मैं कुछ नहीं बोलता हूँ लेकिन नौकर भी बोले तो बर्दाश्त के बाहर की बात हैं न..? दादी :-इतना औकात है तो यहाँ आकर डांट मार के दिखाओ... आज के बाद तुम मुझसे बात नहीं करना...! इतना से उन्हें संतोष नहीं हूआ अपने बेटे (मेरे पति) को फोन करके बोलीं :-तुम्हारा बेटा मुझे आधा घंटा डाटा है.. अब गुस्साने की बारी मेरे पति की थी...लेकिन राहुल की दादी से दो बार की बातों के बिच और बाद में मेरी भी बाते हुई थी सब मिला कर १४ मिनट की बातें थी.. आधा घंटे की बात गलत साबित होते इनकी गुस्सा थोडा शांत हूआ... १४-११-२०११
मैं सोची अशांति फैले ,मैं सास से माफी मांग लूं ,फोन की सास :-हमरा मन में बहुत दुःख लागल बा मैं :-काहे सास :-राहुल हमरा के बहुत बोलले, मैं :-शब्द में बतावल जाये, सास :-तुम नौकर को चढ़ा के मेरी माँ का बेइज्जत कराती हो ? मैं :-सच सच बोलल जाई काहे की राहुल भी सब बात सुन रहल बाड़े ,सास :-हमरा यद् नइखे की का का बोलले लेकिन बहुत कड़ा हो के बोलले ,मैं :-कड़ा होके राहुल बोलले , इ त विश्वास करे वाला बात ही नइखे रउवा गलत गलत बात काहे बोलल जात बानी,राउर बेटा बहुत गुस्सा में बानी ,सास :-बेटा के चढ़ा के मार खिवलु एक दिन तहरो के मारी,
मैं :- एक सवाल....? गलती कितनी बड़ी..... ?? मेरा या मेरे बेटे की गलती इतनी बड़ी थी, की सास-बहु या दादी-पोता में बातचीत बंद हो जाए..?

हंसू या रौऊ.... !!


"मैं :-जानत भी न रहनी की राहुल अपने से बात करहियें हम काहे चाहेब की उ राउर इज्जत न करस.
सास :- तहरा इहे चाल से,तहरा दुआरे कोई थूके नइखे जात.
मैं :-इ दुआर पहले अपने के ह कोई नइखे आवत त हमार  जिन्दगी चल रहल बा की ना..?
सास :_तू भी सास बनबू ,तू भी दादी बनबू..... !!"

मैं हंसू या रौऊ.... !! अतीत की घटना पर केवल रोना ही रोना आया था.... :( राहुल से फिर बात की.
"मैं :-दादी बहुत नाराज हैं,हो सकता है,नाराजगी में संभवत तुम्हारे पापा भी गुस्सा में तुम से कुछ बोलें...?
राहुल :-पापा जितना बोलना चाहें बोलें ... मेरे पास उनके लिए केवल एक सवाल है अगर मेरे जगह वे होते और मेरी माँ के जगह पर उनकी माँ होती तो वे क्या करते... ?"
मैं हंसू या रौऊ.... !!

वातावरण से इन्सान संवेदना + हीन बनता है और जहाँ संवेदना समाप्त हो जाती है वहां हिंसा की प्रवृति बढ़ जाती है... !! "

सभी कहते हैं बड़े बुजुर्ग की साया सर पर रहे तो नई पीढ़ी सुरक्षित रहता है... ! माँ का स्थान भगवान् के पहले आता है.... !! मेरे घर में बेटे समझ रहे हैं और माँ.... ??
मैं हंसू या रौऊ.... !!

जब मैं ब्लॉग बनाई तो लगा क्या लिखूं....? राहुल बोला :- तुम अपने अनुभव से ही शुरुआत करो.... !
लेकिन अनुभव तो अतीत का था जिसमे सुख के पल भी मुझे अपमानित और प्रताड़ित करता हूआ मिला था और दुःख के पल अति दर्दनाक..... !!

मैं निर्णय की थी सिर्फ बर्तमान के अनुभव लिखूंगी... !अतीत को कभी याद नहीं आने दूंगी क्योकि वो केवल डंसता था.... !! हाल के वर्षो में लगने लगा था , सभी बदल गयें है , हालात बदल गया है , फिर एक बार मेरी सोच " मृगतृष्णा की दुनिया " साबित हूआ.... !!!!    लेकिन अपना सोचा कब होता है.... ?
मैं हंसू या रौऊ.... !!

Saturday 19 November 2011

सफर के ५७ घंटे.... !!


६-११-२०११
सुबह के ५ बजे मैं और मेरा बेटा मैसूर से बंगलौर आये , ९ बजे ट्रेन चली पटना के लिए....!आस - पास कोई येसा नहीं था , जिससे गप्प कर समय काटा जाये....!कोई पत्रिका भी नहीं मिल सका था.... !कुच्छ बोरियत होने लगी थी.... :( चेन्नई से ३ या ४ बजे कुच्छ परिवार चढ़े , जिनसे बात - चीत शुरू हुई.... !!
किसी ने कहा :- " लैला " काफी कुरूप थी , " मजनू " बहुत खुबशुरत...मजनू लैला के प्यार में इतने दीवाने थे ,कि उसकी एक झलक देखने के लिए उसके पीछे - पीछे बेसुध होकर दौड़ा करते.... !!इसी क्रम में उनका पैर , नमाज पढ़ते हुए मौलाना के जानमाज पर पड़ गया.... मौलाना को बहुत गुस्सा आया , वे मजनू को डांटने लगे ,बहुत भला - बुरा कहा....जब मौलाना कुच्छ देर में शांत हुए , तो मजनू ने कहा , मैं तो अपने लैला के प्यार में इतना खोया था तो आपके जानमाज पर नजर नही पड़ी , आप तो उस खुदा के याद में खोये हुए थे , तो आपकी नजर मेरे पैरो पर कैसे पड़ी.... !!
इस पर मुझे एक वाक्या याद आया ...एक दिन मेरी सास द्वारा गुरूवार के कथा सुन रहे मेरे ससुर चिल्ला केर बोले " रमुआ देख त कमरा के कोना में " भाला " बा.... इस पर मेरे पति बोले , विष्णु के खोदे के बा का.... ?"
लिखने का मतलब ये है , कि भगवन कि भक्ति में लीन होने के बाद भी इंसानों का मन भटकता क्यौ है....? यह बहस का मुद्दा था... इस बहस का कोई अंत भी नहीं था.....!!
 ७-११-२०११
आज का मुख्य मुद्दा यह रहा कि बहुओँ के साथ किस तरह से ताल मेल बिठाया जा सके...!यह भी बहस का मुद्दा था और बहस का कोई अंत नहीं था , क्योंकि सभी का अनुभव अलग - अलग था तो विचार एक कैसे एक होता...!!
८-११-२०११
पटना तक पहुँचते -पहुँचते सभी ने मुझ से पूछा कि आप किस निर्णय तक पहुचीं...?मेरा अपना कोई अनुभव तो था नहीं , इस बहस में हिस्सा नहीं बन सकी...मेरा कहना था कि सास -बहु का रिश्ता कोई थियोरी से नही संभाला जा सकता....!ये परिस्थितियों के अनुसार आपसी समझदारी से निबाहा जा सकता है , जो दोनों कि जिम्मेवारी बनती हैं....!! दोपहर के १ बजे ट्रेन पटना स्टेशन पहुंची, २ बजे मैं घर वापस आई... इस तरह ४८ घंटे का सफ़र ५७ घंटे में समाप्त हुई, फिर भी इस बार सफ़र छोटा लगा....!!

विषम प्रस्थिति.... !! ya ??


कोई भी मृत्यु की बाते क्यों करते हैं.... ??
कोई असहनीय पीड़ा , कोई बड़ी असफलता , अकेलापन ,
अवसाद ग्रस्त हो और उसके आस पास का परिवेश भी नकारत्मक हो ,
कोई उसे समझने की कोशिश ही करे या ,
उसे हरदम नीचा दीखाया जाता रहे , या कुछ अन्य.... !!
 कुछ भी ऐसा है जिसका हल हो.... ?
वस्तुतः कारण को जानने और समझने की ज़रूरत ज़्यादा है... !
केवल एक सकारात्मक सोच की जरूरत होती है... !
विषम प्रस्थिति में अपने को उबार लेना ही बहादुरी है .... !!

Friday 4 November 2011

सांप छछूंदर की गति.... !!

इस यात्रा की मैसूर में अंतिम रात.... !! बेटा बहुत उदास है.... उसका मन है , मैं छ महीने यहीं रहूँ.... उसे कैसे समझाउं ,पत्नी और माँ के बीच चल रहे द्वन्द को.... शादी के इन तीस सालो में , मैं कभी किसी पर्व - त्यौहार पर , अपने मैके या किसी रिश्तेदारों के घर नहीं गई.... पापा - भैया ने न जाने कितनी बार बुलाएँ होगें.... पर मेरा जाना इनको पसंद नहीं आता.... बेटी और पत्नी के द्वन्द में जीत पत्नी की हो जाती.... पापा के जीवन के अंतिम छठ में , उनकी इच्छा थी की मैं भी आऊं परन्तु नहीं जा सकी.... इसका अफसोस , मुझे भी ताउम्र रहेगा.... इस बार पत्नी और माँ के द्वन्द में जीत माँ की हुई.... दशहरे और दीपावली में बेटे के पास रही , उन्हें अकेले छोड़कर.... आते समय , जब वे स्टेशन छोड़ने आये तो बोले , मुझे सजा दे रही हो....?? जाते समय बेटा स्टेशन छोड़ने जायेगा और बोलेगा मुझे अकेले छोड़ कर जा रही हो.... ?? कितना अच्छा होता , बेटा बड़ा ही नहीं होता.... हम तीनो साथ ही रहते.... लेकिन ये कल्पना ही बेबकूफी है.... अभी तो अपने मन को समझाने के लिए , उसे समझाई हूँ , तुम्हे आगे की पढाई की तैयारी करनी है.... मै फिर जल्दी आउंगी , लेकिन जानती हूँ.... जल्दी आ पाना आसान नहीं.... आते समय मन उदास था लेकिन ख़ुशी भी बहुत थी.... !! जाते समय मन बहुत उदास ,सिर्फ उदास और बैचेन है.... :( क्योकि बेटा की इच्छा नहीं है कि मैं जाऊं.... :( शायद , इसी परिस्थिति के लिए बना होगा.... सांप छछूंदर की गति.... !! 

Thursday 3 November 2011

मैसूर की बरसात.... !!

सूर्य आग का गोला दीखता ,
दूर - दूर बादल नजर नहीं आता ,
पलक झपकते ही ,
लो हो गई बरसात.... !

चमकती धुप थी ,
सूखने के लिए कपड़े ,
डाल कर पलटी ,
लो हो गई बरसात.... !

खिली -खिली धुप थी ,
sun - set देखने का प्रोग्राम बना ,
लो हो गई बरसात.... !

दिवाली के लिए ,
दिया  सजाई ,
लो हो गई बरसात.... !

बारिश - बारिश और सिर्फ बारिश.... !!

इसमें कमी है ,
लिट्टी - चोखे की ,
गर्म - गर्म पकोड़े की,
ख़ुद बना , खाना ,
अच्छा नहीं लगता ,
लो हो गई बरसात.... !

आखें बार बार खिड़की के ,
बाहर झांकती ,
धूप निकलने का ,
इंतज़ार करती ,
लगता है मेरे जाने के बाद ,
ख़त्म होगी मैसूर की बरसात.... ?????
लो हो गई बरसात.... !!

Wednesday 2 November 2011

" दुःख-सुख "


सुख और दुःख सगी बहनें साथ नहीं आती.... ! 
दुःख और सुख जिन्दगी के हर पहलु को रंगती.... !
सुख और दुःख अति होना जिन्दगी बदरंग करती.... !   
दुःख हल चलाना किसानो को नहीं हराती.... ! 
सुख भोजन का तभी हमें देती धरती.... !
दुःख प्रसव - वेदना का स्त्रियाँ सहती.... !
सुख मातृत्व का पा वे हसंती इठलाती.... ! 
दुःख की जड़े जितनी गहराई से मन में जमती.... !
सुख के लिए उतनी ही जगह दिल में बनती.... !